मस्जिद के इमाम और स्टाफ़ की ग़रीबी दूर करने का जायज़ दीनी तरीक़ा सुन्नत में देखें
नबी स० और सहाबा र० लोगों को नमाज़ और क़ुरआन के साथ इलाज करना, ऊंट, घोड़े, भेड़-बकरी पालना, खेती करना और व्यापार करना भी सिखाते थे। उन्होंने ये सब काम करके दिखाए हैं। वे बड़े जहाज़ों में माल भरकर उसे बेचने के लिए इंडिया भी आते थे। इन कामों से मोमिन आत्मनिर्भर और अमीर बनता है।
मस्जिदों और मदरसों में नबी और सहाबा के ये सब काम नहीं सिखाए जाते। मौलवी साहब की तंग नज़र में ये सब काम दीन नहीं हैं बल्कि दुनिया के काम हैं।
मौलवी साहब के इस ग़लत नज़रिए का नतीजा यह हुआ कि
मदरसों से पढ़ने के बाद मुस्लिम आत्मनिर्भर और अमीर बनने के बजाय दूसरों पर निर्भर और ग़रीब हो गया।
आज मस्जिद के इमाम और स्टाफ़ की ग़रीबी की शिकायत आम है। उन्हें जाहिल लेकिन अमीर मुतवल्ली और मुक़्तदी डाँटते रहते हैं। वे ग़रीबी में नौकरी खोने के डर से उनकी डाँट डपट सुनते रहते हैं।
#atmanirbharta_coach कहता है कि
अगर ये लोग पशु पालन और व्यापार करते तो ये दूसरों पर निर्भर और ग़रीब न बनते। उन्हें जाहिल बेअदब लोगों के मातहत न रहना पड़ता।
आज यह बहुत ज़रूरी है कि मस्जिदों और मदरसों में सबको नबी और सहाबा की ज़िन्दगी से #आत्मनिर्भर और #अमीर बनने का तरीक़ा सिखाया जाए।
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