रब के ज़िक्र का वह ख़ास तरीक़ा, जिससे आती है मौज

 

जवाब: W alaykum assalam Sajid bhai, परमात्मा शब्द को कुछ हिंदू बहन भाई परमेश्वर के अर्थ में बोलते हैं जबकि परमेश्वर परमात्मा का स्वामी है।

ख़ैर, वह बहन परमेश्वर अल्लाह या ख़ुदा या God को ऐसे क्यों याद करना चाहती है कि वह सब कुछ भूल जाए?

क्या परमेश्वर अल्लाह ने अपने बंदों को ऐसा करने के लिए कहा है?

नहीं।

...तो फिर उसे उस तरह याद करो जैसे कि वह चाहता है।

वह चाहता है कि बंदा कायनात की हर चीज़ को, उनकी ख़ूबियों को, ख़ुद को और ख़ुद की ख़ूबियों को रब की निशानियाँ माने और उन पर, उनके मक़सद पर ध्यान दे। जिस तरह हर चीज़ काम करती है। उस पर ध्यान दे और हर चीज़ से उसे जो जो फ़ायदे उसे और सबको पहुंच रहे हैं, उन फायदों पर ध्यान दे ताकि बंदे के दिल में रब की नेमतों पर उसके शुक्र का जज़्बा पैदा हो।

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रब का मक़सद यह है कि बंदा अपने रब का शुक्रगुज़ार हो और वह ख़ुद को रब के रंग में रंगे कि जैसे रब सबको फ़ायदा पहुंचा रहा है, वैसे ही मैं भी अपनी ताक़त के मुताबिक़ सबको फ़ायदा पहुंचाऊँ।

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शुक्र दिल की एक भावना है। जब एक बंदा शुक्र से भर जाता है तो उसे ज़ाहिर करने के लिए उसे बोल की ज़रूरत पड़ती है।

'अल्हम्दुलिल्लाह' शुक्र के वे बोल हैं, जो रब ने बंदों को ख़ुद सिखाए हैं।

जो भी अपने रब को याद करना चाहे, वह अपने दिल को ऊपर बताए गए तरीक़े से ज़्यादा से ज़्यादा शुक्र से भर ले और मुंह से ज़्यादा से ज़्यादा अल्हम्दुलिल्लाह कहता रहे।

एक दो महीने की प्रैक्टिस के बाद यह उसकी आदत बन जाएगी और फिर वह सपने में भी किसी से मिलेगा तो अल्हम्दुलिल्लाह कहेगा। जब ज़िक्र इस मक़ाम तक आ जाए तब वह मर भी जाएगा तो इस दुनिया से अपने दिल में 'अल्हम्दुलिल्लाह' नक़्श करके ले जाएगा।

यही वह कमाई है, जिसे करने के लिए परमेश्वर ने अपने नूर से परमात्मा को और परमात्मा से सब आत्माओं को उत्पन्न किया और फिर सब आत्माओं को शरीर देकर इस दुनिया में भेजा ताकि अल्लाह शुक्रगुज़ारों को नाशुक्रों से अलग कर ले। 

*फल:*

1. शुक्र से रब ख़ुश होता है।

2. शुक्र से बंदे का दिल ख़ुश रहता है।

3. शुक्र से कष्ट नहीं आता, आ जाए तो टल जाता है।

4. जो पुराने कष्ट घर में डेरा डाले पड़े हैं, शुक्र करते ही उनकी डेट एक्सपायर हो जाती है यानी वे कष्ट विदा होने लगते हैं।

5. शुक्र से नेमतों में बरकत होती है।

6. शुक्र से हैल्थ अच्छी रहती है।

7. शुक्र से बुढ़ापे की प्रोसेस स्लो हो जाती है।

8. पवित्र क़ुरआन में शुक्रगुज़ार बंदों को बुढ़ापे में भी औलाद मिलने की घटना का ज़िक्र किया गया है, जो कि बढ़ापे में उनके हाथ, पैर आदि अंगों के हैल्दी होने का प्रमाण है और जो बांझपन था, वह भी शुक्र से ठीक हो गया।

अल्हम्दुलिल्लाह!

9. शुक्र से पाज़िटिविटी बढ़ती है।

10. शुक्रगुज़ार बंदे कभी आत्महत्या, नशा, जुआ, चोरी और अपराध नहीं करते। वे अच्छे लोगों को दोस्त बनाते हैं। बुरे लोग उन्हें दोस्त नहीं बनाते। इसलिए अपने बच्चों के प्राण और उनके चरित्र की रक्षा के लिए माँ बाप उन्हें रब का शुक्र करना सिखाएं।

11. शुक्र की पूरी शिक्षा सूरह अलफ़ातिहा में है। इसकी चौथी आयत के साथ बंदा जो भी नेमत रब से मांगता है और सब्र करता है और उसके लिए अमले सालेह यानी सलाहियत भरा अमल करता है, जिसे आज की ज़ुबान में smart work कहते हैं, उसे रब से अपने दिल की मुराद एक वक़्त बाद ख़ुद मिल जाती है। यह क़ानूने क़ुदरत है।

12. अलफ़ातिहा इतनी ज़्यादा इम्पोर्टेंट है कि यह सूरह हर नमाज़ में पढ़ी जाती है और नमाज़ (सलात) वह तरीक़ा है, जिसे रब ने अपनी याद के लिए ख़ुद तय किया है।

13. रात को सोने के बाद जब इंसान जागता है, अगर वह तब नमाज़ अदा करे या रब का ज़िक्र करे तब यह मुमकिन है कि वह उस ज़िक्र में खो जाए और हर चीज़ को भूल जाए।

14. बंदा हर चीज़ को भूल जाए, यह कैफ़ियत अचानक और ख़ुद आती है। इसलिए इसके पीछे नहीं पड़ना चाहिए। इस कैफ़ियत पर बंदे को क़ाबू नहीं होता कि वह इसे जब चाहे, तब हाज़िर कर ले।

15. लेकिन हाँ, एक तरीक़ा है और वह यह है कि रब की ख़ूबियाँ जानकर बंदा अपने रब से बहुत बहुत ज़्यादा मुहब्बत करने लगे और फिर वह उस मुहब्बत में और ज़्यादा आगे बढ़े। तब वह उस मुहब्बत में हर चीज़ भूलने लगेगा और सिर्फ़ एक रब ही याद रह जाएगा।

यह बात लगातार साधना से पैदा हो जाती है। हो सकता है कि आपको हंसी आए लेकिन कई बार बचपन का दोस्त साथ चल रहा होता है और उसका नाम याद नहीं आता और कई बार तो ख़ुद का नाम याद नहीं आता। तब भी रब का नाम याद रहता है।

💐अल्हम्दुलिल्लाह💐

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